सुबह - सुबह चिड़ियों का चहचहाना और मेरी आंखें खुल जाती हैं । मेरी नजरें बिस्तर से उठते हुए तुम्हारी तस्वीर
पर आकर ठहर सी जाती है । ये मेरी दिनचर्या ््का एक हिस्सा बन गया है । तुम्हें देखना...याद करना नहीं !!
याद तो तुम कभी आते ही नहीं हो ! कैसे याद आओगे...याद करने के लिए भूलना भी तो जरूरी है और तुम्हें भूलें कैसे ! तुम मेरी रूह में जो समाये हुए हो ।
मुझे आज भी याद है ....वो दिन जब मैं पहली बार तुमसे मिली थी। जब तुम मुझे देखने आये थे। और जब घर वालों ने तुम्हें मुझसे कुछ सवाल पूछने को कहा था और तुमने क्या पूछा था !
" क्या आपको चाय बनाने आती है " हा...हा..सच में उस दिन को याद करके आज भी एक मुस्कुराहट आ जाती है इस चेहरे पर । मैंने उस समय हां तो कह दिया था । क्योंकि घरवालों ने अच्छे से सिखाया था कि , खाना बनाने के बारे में पूछे तो हां कह देना । क्योंकि उस समय की बात ही अलग थी । उस समय अगर गांव में किसी के लड़के वाले देखने आ जाते तो , पूरे मौहल्ले को पता चल जाता और हम लोग ठहरें लड़की वालें । क्या करतें हां...कहना पड़ा !
फिर जब शादी के बाद पहली बार इस घर में आई ...एक घबराहट थी और घबराहट से ज्यादा डर था । डर इसीलिए क्योंकि चाय तो बहुत दूर की बात थी मुझे खाना बनाना भी नहीं आता था । घरवालों ने मुझे जितना समझाया और सिखाया सब सर के ऊपर से निकल गया । अब डर और घबराहट साथ लिए अपने आपको समेटे पलंग के एक कोने में सिकुड़ कर बैठी थी । जब तुमने कमरें में कदम रखा था और मुझे यूं घबराई हुई देखकर परेशान से हों गये थे । उस समय तुमने एक दोस्त की तरह मुझे समझा और मेरी बातें सुनी । अगले दिन तुमने चाय बनाने के लिए कहा ! अब तो मेरी हालत में हो गई थी, कि कैसे तुमसे नजर मिलाऊंगी । मेरा झूठ तो अभी पकड़ा जायेगा । मैंने डरते-डरते रसोई में कदम रखा और जैसे मां ने सिखाया था । वैसे ही याद करके जैसे - तैसे चाय बनाने लगी । जब चीनी डालने लगे तो देखा दो डिब्बे है वहां पर दोनों ही सफेद रंग के थे । मैंने पास में रखे एक डिब्बे के ढक्कन को खोला और दो चम्मच चीनी डाल दी । जब चाय लेकर तुम्हारे पास आयी तुम्हारे चेहरे पर एक अलग ही चमक देखी । तुमने चाय का कप लिया और एक घूंट पीया और मेरी ओर देखा । उस समय डर से मेरी हालत खराब हुई जा रही थी । शायद तुम्हें मेरे डर का पता लग गया । तुमने पूरी चाय पी और कहा ! रिद्धि...चाय अच्छी बनी है । मैं सुना तो खुश हो गई और रसोई में जाकर अपनी बनी हुई चाय पीने लगी । एक घूंट भरा ही था कि सब मुंह से बाहर आ गया । छी: इतनी गन्दी चाय बनी है । हे भगवान मैं तो मुंह में भी नहीं रख पाई और इन्होंने पूरी चाय पी ली ।पर क्यूं ? मैंने तो सुना था कि एक बार खाना बिगड़ जाय चला लेते हैं , पर सुबह की चाय वो उन्हें पसंद नहीं । मैं तुमसे माफी मांगने कमरें में आई तो तुम्हें देखा । एक टक देखा ... और जब तुमने मुझे देखा तो डर कर नजरें झुका ली । जब तुम करीब आये तो तुमसे बस इतना ही पूछा ...!! झूठ क्यों कहा तुमने ... !!! चाय तो बहुत गंदी बनी है ।
तुमने बस इतना ही कहा ....चाय तो पसंद हमारी पर आप प्यार हैं हमारा ....।।
आज भी जब उन पुराने दिनों को याद करती हूं । तुमसे जुड़ जाती हूं , उम्र के इस पड़ाव में आकर भी कभी अपने आप को अकेला नहीं पाया । तुम जो साथ थे मेरे ... मैं , तुम और हमारी चाय ...😊😊
Seema Priyadarshini sahay
18-Jul-2022 04:31 PM
बेहतरीन रचना
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Chetna swrnkar
18-Jul-2022 05:52 AM
Nice
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Rahman
17-Jul-2022 10:02 PM
👍👍👍
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